जैविक खेती, वर्मी कंपोस्ट और आधुनिक तकनीकों के माध्यम से खुशीराम डबराल ने अपने गाँव में सफलता की नई कहानी लिखी है।

राज्य सरकार की नीतियों का प्रभाव अब पहाड़ के गाँवों तक साफ दिखने लगा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में आज उत्तराखंड के ग्रामीण किसान जैविक खेती, बागवानी और स्वरोजगार योजनाओं के जरिए अपनी पहचान बना रहे हैं। इन्हीं में से एक प्रेरक उदाहरण हैं — टिहरी जनपद के चोपडियालगांव के खुशीराम डबराल।

खुशीराम ने अपनी लगभग 100 नाली भूमि पर पारंपरिक खेती को आधुनिक रूप दिया। 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने पूरी तरह खेती को अपनाया और कृषि विभाग एवं पंतनगर विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लेकर नई तकनीकें सीखी।

उन्होंने खेती में वर्मी कंपोस्ट, टपक सिंचाई प्रणाली, वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकों का उपयोग किया। साथ ही बहुफसली खेती अपनाकर अदरक, लहसुन, मिर्च, मेथी, सरसों, प्याज, अमरूद, केला, मटर, शिमला मिर्च जैसी फसलों की खेती शुरू की।

खुशीराम की मेहनत और नई सोच का नतीजा यह रहा कि जहाँ पहले उनकी सालाना आय 2.5 से 3 लाख रुपये थी, वहीं अब यह बढ़कर 8 लाख रुपये से अधिक हो गई है। वर्ष 2025 तक 12 लाख रुपये से अधिक की आय का अनुमान है।

राज्य सरकार की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और कृषि विभाग की पहल से प्रेरित होकर खुशीराम ने न केवल अपनी आय बढ़ाई बल्कि आसपास के युवाओं और महिलाओं को भी खेती के आधुनिक तरीकों की ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।

आज खुशीराम डबराल का खेत सिर्फ खेती का केंद्र नहीं, बल्कि सीख और बदलाव की पाठशाला बन चुका है। उन्होंने जैविक खेती को रोजगार का माध्यम बनाया और यह साबित किया कि अगर नीयत साफ हो और मेहनत सच्ची, तो पहाड़ की ज़मीन भी सोना उगल सकती है।

खुशीराम डबराल आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की आत्मनिर्भर उत्तराखंड की सोच को जमीनी स्तर पर साकार करने वाले प्रेरक किसान बन चुके हैं।

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